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जैन समाज मनाएगा आचार्य सम्राट शिवमुनि जी का जन्मदिवस, उपवास के साथ होगी धर्म आराधना

जैन साध्वियों ने पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन जैन साध्वियों ने बताए अंतगढ़ सूत्र के प्रेरक संदेश

शिवपुरी — 17 सितंबर को आराधना भवन में आचार्य सम्राट शिवमुनि जी का जन्मदिवस प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के निर्देशन में मनाया जाएगा। इस अवसर पर व्रत, उपवास और धर्म आराधना कर आचार्यश्री को जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी जाएंगी।  साध्वी रमणीक कुंवर ने बताया कि आचार्य सम्राट डा. शिवमुनि  जैन श्रमण संघ के प्रमुख हैं। पंजाब के मलौट नामक छोटे से गांव में जन्मे शिवमुनि ने प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की प्रत्येक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। छात्र जीवन के दौरान उन्होंने अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड आदि कई अन्य देशों की दूर-दूर तक यात्राएं कीं, लेकिन धन संपत्ति और भौतिक सुविधाएं उन्हें लुभाने और बांधने में विफल रहीं और उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग कर एक तपस्वी का जीवन अपनाने का दृढ़ संकल्प लिया। वह आचार्य आत्माराम जी के शिष्य थे। जैन जगत स्वयं को भाग्यशाली मानता है कि उन्हें आध्यात्मिक नेता एक ऐसा व्यक्ति मिला है जो इतना प्रबुद्ध तपस्वी इतना सरल और ध्यान में समर्पित है।
वहीं धर्म सभा को संबोधित करते हुए गुरुवार को साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि जिस पर अपने माता-पिता का आशीर्वाद होता है। जो अपने माता-पिता की तन, मन, धन से सेवा करता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। माता-पिता में ईश्वर की छवि होती है और ईश्वर पूजा से बढ़कर माता-पिता की सेवा है। धर्मसभा में जैन शास्त्र अंतगढ़ सूत्र का वाचन साध्वी पूनमश्री जी ने किया और साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अंतगढ़ सूत्र के प्रेरक संदेश धर्मांवलंबियों को बताए। साध्वी जयश्री जी ने मां के चरणों में स्वर्ग है हमारा… स्वर्ग है हमारा, तेरे आंचल में मिलता है हर दुख से किनारा… भजन का सुमधुर स्वर में गायन किया।
श्रीकृष्ण तीन खंडों के अधिपति, लेकिन मां की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अंतगढ़ सूत्र के संदेश को स्पष्ट करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण तीन खण्डों के अधिपति थे, लेकिन इसके बावजूद भी वह अपनी मां देवकी की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर रहते थे। उन्होंने बताया कि एक दिन जब वह अपनी मां के दर्शन और वंदन करने के लिए गए तो उन्होंने उन्हें उदास देखा। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी माँ से पूछा कि उनकी उदासी का कारण क्या है? देवकी मां ने कहा कि मैं भले ही सात-सात बच्चों की मां हूं, लेकिन अपने बच्चों का बचपन और उनकी बाल लीलाएं मैंने नहीं देखी हैं। इस सुख से मैं वंचित हूं। भगवान श्रीकृष्ण भी उदास हो गए और वे पोषद शाला में गए और उन्होंने तीन दिन का व्रत किया तथा तीन दिन धर्म जागरण किया। इस पर हिरणगमेषी देव ने प्रकट होकर उनसे उनकी इच्छा पूछी और कहा कि तुम्हारा शीघ्र ही छोटा भाई होगा। इस तरह से बालक गजसुकुमाल का जन्म हुआ, लेकिन देवता ने पहले ही बता दिया था कि यौवन होते ही यह बालक दीक्षा लेगा, परंतु यह बात भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी को नहीं बताई। साध्वी जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने हमें संदेश दिया कि कब कहां बोलना और कब कहां चुप रहना।

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